चमन में रख़्त-ए-गुल शबनम से तर है
समन है सब्ज़ा है बाद-ए-सहर है
मगर हंगामा हो सकता नहीं गर्म
यहाँ का लाला बे-सोज़-ए-जिगर है
Mir Taqi Mir
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
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Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
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मस्जिद-ए-क़ुर्तुबा
मैं जो सर-ब-सज्दा हुआ कभी तो ज़मीं से आने लगी सदा
साक़ी-नामा
कुशादा दस्त-ए-करम जब वो बे-नियाज़ करे
हमदर्दी
यही आदम है सुल्ताँ बहर-ओ-बर का
न पूछो मुझ से लज़्ज़त ख़ानमाँ-बर्बाद रहने की
तराना-ए-मिल्ली
लेनिन
न आते हमें इस में तकरार क्या थी
मता-ए-बे-बहा है दर्द-ओ-सोज़-ए-आरज़ूमंदी
कमाल-ए-तर्क नहीं आब-ओ-गिल से महजूरी