मोहब्बत का जुनूँ बाक़ी नहीं है
मुसलामानों में ख़ूँ बाक़ी नहीं है
सफ़ें कज, दिल परेशाँ, सज्दा बे-ज़ौक़
कि जज़्ब-ए-अन्दरूँ बाक़ी नहीं है
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ख़ुदी हो इल्म से मोहकम तो ग़ैरत-ए-जिब्रील
हुए मदफ़ून-ए-दरिया ज़ेर-ए-दरिया तैरने वाले
ख़ुदावंदा ये तेरे सादा-दिल बंदे किधर जाएँ
ख़िरद ने मुझ को अता की नज़र हकीमाना
रम्ज़-ओ-ईमा इस ज़माने के लिए मौज़ूँ नहीं
सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
वही मेरी कम-नसीबी वही तेरी बे-नियाज़ी
अरब के सोज़ में साज़-ए-अजम है
हम को तो मयस्सर नहीं मिट्टी का दिया भी
अच्छा है दिल के साथ रहे पासबान-ए-अक़्ल
कुशादा दस्त-ए-करम जब वो बे-नियाज़ करे
बुतों से तुझ को उमीदें ख़ुदा से नौमीदी