जाने क्या बरसा था रात चराग़ों से
भोर समय सूरज भी पानी पानी है
Parveen Shakir
Gulzar
Habib Jalib
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Wasi Shah
Anwar Masood
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(751) Peoples Rate This
सूखी टहनी पर हरियल
एक सन्नाटा बिछा है इस जहाँ में हर तरफ़
मैं अपनी वुसअतों को उस गली में भूल जाता हूँ
युधिष्ठिर
हर फूल पे उस शख़्स को पत्थर थे चलाने
गए थे हम भी बहर की तहों में झूमते हुए
दरवाज़ा वा कर के रोज़ निकलता था
शब ख़्वाब के जज़ीरों में हँस कर गुज़र गई
मिरे चेहरे पे जो आँसू गिरा था
हर इक नदी से कड़ी प्यास ले के वो गुज़रा
बुरीदा बाज़ुओं में वो परिंद लाला-बार था
सूप के दाने कबूतर चुग रहा था और वो