दामन पे तो हर एक के छीटें हैं ख़ून की
अब किस से पूछिए कि गुनहगार कौन है
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Gulzar
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आए हैं समझाने लोग
दर्द-ए-दिल की दवा है माह-ए-नौ
ज़माना उफ़ ये कैसा हो रहा है
हम फ़ितरतन इंसाँ हैं फ़रिश्ते तो नहीं हैं
सच ये है हम ही मोहब्बत का सबक़ पढ़ न सके
रात का क्या ज़िक्र है शाम-ओ-सहर आया नहीं
चढ़ते तूफ़ान को साहिल से गुज़रना था मियाँ
शहर की गलियों और सड़कों पर फिरते हैं मायूसी में
ज़िंदगी अपनी ख़्वाब जैसी है
है तक़ाज़ा-ए-तहज़ीब 'अनवर'
रोज़ उठ जाती है घर में कोई दीवार नई
हुस्न ऐसा कि ज़माने में नहीं जिस की मिसाल