तितलियाँ रंगों का महशर हैं कभी सोचा न था
उन को छूने पर खुला वो राज़ जो खुलता न था!
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चाँद मेरे घर में उतरा था कहीं डूबा न था
मैं अज़ल का राह-रौ मुझ को अबद की जुस्तुजू
तिरे बाज़ूओं का सहारा तो ले लूँ मगर उन में भी रच गई है थकन
तिरे बाज़ुओं का सहारा तो ले लूँ मगर इन में भी रच गई है थकन
हम भी नादाँ हैं समझते हैं कि छट जाएगी
छुपाए दिल में हम अक्सर तिरी तलब भी चले
हयूले
तीरा-ओ-तार ख़लाओं में भटकता रहा ज़ेहन
कभी ख़याल के रिश्तों को भी टटोल के देख
कितनी हसरत से तिरी आँख का बादल बरसा