वफ़ा निगाह की तालिब है इम्तिहाँ की नहीं
वो मेरी रूह में झाँके न आज़माए मुझे
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हम भी नादाँ हैं समझते हैं कि छट जाएगी
चाँद मेरे घर में उतरा था कहीं डूबा न था
छुपाए दिल में हम अक्सर तिरी तलब भी चले
'आरिफ़' अज़ल से तेरा अमल मोमिनाना था
तिरे बाज़ुओं का सहारा तो ले लूँ मगर इन में भी रच गई है थकन
जो उभरे वक़्त के साँचे में ढल के
था ए'तिमाद-ए-हुस्न से तू इस क़दर तही
तितलियाँ रंगों का महशर हैं कभी सोचा न था
कितनी हसरत से तिरी आँख का बादल बरसा
ढूँढता हूँ सर-ए-सहरा-ए-तमन्ना ख़ुद को
ज़ात का आईना जब देखा तो हैरानी हुई
हमीं ने रास्तों की ख़ाक छानी