था ए'तिमाद-ए-हुस्न से तू इस क़दर तही
आईना देखने का तुझे हौसला न था
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ज़मीं से ता-ब-फ़लक कोई फ़ासला भी नहीं
वफ़ा निगाह की तालिब है इम्तिहाँ की नहीं
हमीं ने रास्तों की ख़ाक छानी
मैं अज़ल का राह-रौ मुझ को अबद की जुस्तुजू
'आरिफ़' अज़ल से तेरा अमल मोमिनाना था
मैं जिस को राह दिखाऊँ वही हटाए मुझे
बजा कि कश्ती है पारा पारा थपेड़े तूफ़ाँ के खा रहा हूँ
तितलियाँ रंगों का महशर हैं कभी सोचा न था
ढूँढता हूँ सर-ए-सहरा-ए-तमन्ना ख़ुद को