ज़ात का आईना जब देखा तो हैरानी हुई
मैं न था गोया कोई मुझ सा था मेरे रू-ब-रू
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Rahat Indori
Gulzar
Javed Akhtar
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(867) Peoples Rate This
मैं जिस को राह दिखाऊँ वही हटाए मुझे
कभी ख़याल के रिश्तों को भी टटोल के देख
चाँद मेरे घर में उतरा था कहीं डूबा न था
था ए'तिमाद-ए-हुस्न से तू इस क़दर तही
वफ़ा निगाह की तालिब है इम्तिहाँ की नहीं
ज़मीं से ता-ब-फ़लक कोई फ़ासला भी नहीं
तिरे बाज़ुओं का सहारा तो ले लूँ मगर इन में भी रच गई है थकन
रूह के जलते ख़राबे का मुदावा भी नहीं
हयूले
तितलियाँ रंगों का महशर हैं कभी सोचा न था
छुपाए दिल में हम अक्सर तिरी तलब भी चले