Ghazals of Arshad Ali Khan Qalaq (page 2)

Ghazals of Arshad Ali Khan Qalaq (page 2)
नामअरशद अली ख़ान क़लक़
अंग्रेज़ी नामArshad Ali Khan Qalaq

हम ने एहसान असीरी का न बर्बाद किया

हम तो हों दिल से दूर रहें पास और लोग

हैं तेग़-ए-नाज़-ए-यार के बिस्मिल अलग अलग

गुलों पर साफ़ धोका हो गया रंगीं कटोरी का

गर दिल में कर के सैर-ए-दिल-ए-दाग़-दार देख

डोरा नहीं है सुरमे का चश्म-ए-सियाह में

दिल में आते ही ख़ुशी साथ ही इक ग़म आया

दाँतों से जबकि उस गुल-ए-तर के दबाए होंठ

दफ़्तर जो गुलों के वो सनम खोल रहा है

चश्मक-ज़नी में करती नहीं यार का लिहाज़

बुत-परस्ती ने किया आशिक़-ए-यज़्दाँ मुझ को

बुत-परस्ती ने किया आशिक़-ए-यज़्दाँ मुझ को

बोलेगा कौन आशिक़-ए-नादार की तरफ़

बे-ज़बानों को भी गोयाई सिखाना चाहिए

बशर के फ़ैज़-ए-सोहबत से लियाक़त आ ही जाती है

बाक़ी न हुज्जत इक दम-ए-इसबात रह गई

अदा से देख लो जाता रहे गिला दिल का

आश्ना होते ही उस इश्क़ ने मारा मुझ को

आशिक़-ए-गेसू-ओ-क़द तेरे गुनहगार हैं सब

आरिज़ में तुम्हारे क्या सफ़ा है

आएँगे वो तो आप में हरगिज़ न आएँगे

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