Ghazals of Arshad Ali Khan Qalaq

Ghazals of Arshad Ali Khan Qalaq
नामअरशद अली ख़ान क़लक़
अंग्रेज़ी नामArshad Ali Khan Qalaq

ये जी में आता है जल जल के हर ज़माँ नासेह

ये बोले जो उन को कहा बे-मुरव्वत

ये बारीक उन की कमर हो गई

यार के नर्गिस-ए-बीमार का बीमार रहा

यगाना उन का बेगाना है बेगाना यगाना है

वाइज़ की ज़िद से रिंदों ने रस्म-ए-जदीद की

वा'दा-ख़िलाफ़ कितने हैं ऐ रश्क-ए-माह आप

था क़स्द-ए-क़त्ल-ए-ग़ैर मगर मैं तलब हुआ

तासीर जज़्ब मस्तों की हर हर ग़ज़ल में है

सोते हैं फैल फैल के सारे पलंग पर

सितम वो तुम ने किए भूले हम गिला दिल का

शरफ़ इंसान को कब ज़िल्ल-ए-हुमा देता है

सैर करते उसे देखा है जो बाज़ारों में

साफ़ बातों से हो गया मा'लूम

रोज़-ए-अव्वल से असीर ऐ दिल-ए-नाशाद हैं हम

रग-ओ-पै में भरा है मेरे शोर उस की मोहब्बत का

पिन्हाँ था ख़ुश-निगाहों की दीदार का मरज़

परतव-ए-रुख़ का तिरे दिल में गुज़र रहता है

परतव पड़ा जो आरिज़-ए-गुलगून-ए-यार का

नहीं चमके ये हँसने में तुम्हारे दाँत अंजुम से

न वो ख़ुशबू है गुलों में न ख़लिश ख़ारों में

न कल तक थे वो मुँह लगाने के क़ाबिल

मिलता है क़ैद-ए-ग़म में भी लुत्फ़-ए-फ़ज़ा-ए-बाग़

लुत्फ़-ए-बहार मुश्फ़िक़-ए-मन देखते चलो

लूटे मज़े जो हम ने तुम्हारे उगाल के

लुट रही है दौलत-ए-दीदार क़ैसर-बाग़ में

जुनूँ बरसाए पत्थर आसमाँ ने मज़रा-ए-जाँ पर

जो साक़िया तू ने पी के हम को दिया है जाम-ए-शराब आधा

इश्क़ में तेरे जान-ए-ज़ार हैफ़ है मुफ़्त में चली

हुज़ूर-ए-ग़ैर तुम उश्शाक़ की तहक़ीर करते हो

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