Islamic Poetry of Arshad Ali Khan Qalaq

Islamic Poetry of Arshad Ali Khan Qalaq
नामअरशद अली ख़ान क़लक़
अंग्रेज़ी नामArshad Ali Khan Qalaq

ख़ुदा-हाफ़िज़ है अब ऐ ज़ाहिदो इस्लाम-ए-आशिक़ का

करो तुम मुझ से बातें और मैं बातें करूँ तुम से

हुआ मैं रिंद-मशरब ख़ाक मर कर इस तमन्ना में

बुत-परस्ती में भी भूली न मुझे याद-ए-ख़ुदा

ये जी में आता है जल जल के हर ज़माँ नासेह

यार के नर्गिस-ए-बीमार का बीमार रहा

सोते हैं फैल फैल के सारे पलंग पर

सितम वो तुम ने किए भूले हम गिला दिल का

शरफ़ इंसान को कब ज़िल्ल-ए-हुमा देता है

साफ़ बातों से हो गया मा'लूम

नहीं चमके ये हँसने में तुम्हारे दाँत अंजुम से

हुज़ूर-ए-ग़ैर तुम उश्शाक़ की तहक़ीर करते हो

हम ने एहसान असीरी का न बर्बाद किया

गर दिल में कर के सैर-ए-दिल-ए-दाग़-दार देख

बुत-परस्ती ने किया आशिक़-ए-यज़्दाँ मुझ को

बुत-परस्ती ने किया आशिक़-ए-यज़्दाँ मुझ को

अदा से देख लो जाता रहे गिला दिल का

आश्ना होते ही उस इश्क़ ने मारा मुझ को

आशिक़-ए-गेसू-ओ-क़द तेरे गुनहगार हैं सब

आरिज़ में तुम्हारे क्या सफ़ा है

आएँगे वो तो आप में हरगिज़ न आएँगे

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