मैं वो मय-कश हूँ मिली है मुझ को घुट्टी में शराब
शीर के बदले पिया है मैं ने शीरा ताक का
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कुछ ख़बर देता नहीं उस की दिल-ए-आगह मुझे
ये बोले जो उन को कहा बे-मुरव्वत
न कल तक थे वो मुँह लगाने के क़ाबिल
सितम वो तुम ने किए भूले हम गिला दिल का
जुनूँ बरसाए पत्थर आसमाँ ने मज़रा-ए-जाँ पर
गर दिल में कर के सैर-ए-दिल-ए-दाग़-दार देख
दफ़्तर जो गुलों के वो सनम खोल रहा है
अपने बेगाने से अब मुझ को शिकायत न रही
आएँगे वो तो आप में हरगिज़ न आएँगे
यूँ रूह थी अदम में मिरी बहर-ए-तन उदास
ज़मीन पाँव के नीचे से सरकी जाती है
लूटे मज़े जो हम ने तुम्हारे उगाल के