अपने बेगाने से अब मुझ को शिकायत न रही
दुश्मनी कर के मिरे दोस्त ने मारा मुझ को
Rahat Indori
Javed Akhtar
Gulzar
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(886) Peoples Rate This
दाँतों से जबकि उस गुल-ए-तर के दबाए होंठ
हैं तेग़-ए-नाज़-ए-यार के बिस्मिल अलग अलग
करेंगे हम से वो क्यूँकर निबाह देखते हैं
काबे से खींच लाया हम को सनम-कदे में
करो तुम मुझ से बातें और मैं बातें करूँ तुम से
यगाना उन का बेगाना है बेगाना यगाना है
गुल-गूँ तिरी गली रहे आशिक़ के ख़ून से
राह-ए-हक़ में खेल जाँ-बाज़ी है ओ ज़ाहिर-परस्त
बे-अब्र रिंद पीते नहीं वाइ'ज़ो शराब
न वो ख़ुशबू है गुलों में न ख़लिश ख़ारों में
मुबारक दैर-ओ-का'बा हों 'क़लक़' शैख़-ओ-बरहमन को
गुलों पर साफ़ धोका हो गया रंगीं कटोरी का