Sad Poetry of Arzoo Lakhnavi (page 2)

Sad Poetry of Arzoo Lakhnavi (page 2)
नामआरज़ू लखनवी
अंग्रेज़ी नामArzoo Lakhnavi
जन्म की तारीख1873
मौत की तिथि1951
जन्म स्थानKarachi

ख़ाली बैठे क्यूँ दिन काटें आओ रे जी इक काम करें

करम उन का ख़ुद है बढ़ कर मिरी हद्द-ए-इल्तिजा से

कहीं सर पटकते दीवाने कहीं पर झुलसते परवाने

जो दिल साथ छुटने से घबरा रहा है

जो बुत है यहाँ अपनी जा एक ही है

जिन रातों में नींद उड़ जाती है क्या क़हर की रातें होती हैं

हम आज खाएँगे इक तीर इम्तिहाँ के लिए

हर साँस है इक नग़्मा हर नग़्मा है मस्ताना

हैं देस-बिदेस एक गुज़र और बसर में

गँवा के दिल सा गुहर दर्द-ए-सर ख़रीद लिया

दूर थे होश-ओ-हवास अपने से भी बेगाना था

दिल मुकद्दर है आईना-रू का

दिल में याद-ए-बुत-ए-बे-पीर लिए बैठा हूँ

देखें महशर में उन से क्या ठहरे

भोले बन कर हाल न पूछो बहते हैं अश्क तो बहने दो

बग़ौर देख रहा है अदा-शनास मुझे

अयाँ है बे-रुख़ी चितवन से और ग़ुस्सा निगाहों से

अव्वल-ए-शब वो बज़्म की रौनक़ शम्अ' भी थी परवाना भी

ऐ मिरे ज़ख़्म-ए-दिल-नवाज़ ग़म को ख़ुशी बनाए जा

ऐ जज़्ब-ए-मोहब्बत तू ही बता क्यूँकर न असर ले दिल ही तो है

आराम के थे साथी क्या क्या जब वक़्त पड़ा तो कोई नहीं

आँख से दिल में आने वाला

आने में झिझक मिलने में हया तुम और कहीं हम और कहीं

आज बे-आप हो गए हम भी

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