सौंपोगे अपने बा'द विरासत में क्या मुझे
बच्चे का ये सवाल है गूँगे समाज से
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बहुत मोहतात हो कर साँस लेना मो'तबर हो तुम
तेरे बदन की धूप से महरूम कब हुआ
सरों के बोझ को शानों पे रखना मोजज़ा भी है
रस्ते फ़रार के सभी मसदूद तो न थे
रफ़्ता रफ़्ता ख़त्म क़िस्सा हो गया होना ही था
यहाँ तो हर घड़ी कोह-ए-निदा की ज़द में रहते हैं
वो जिन की हिजरतों के आज भी कुछ दाग़ रौशन हैं
मसअला ये तो नहीं कि सिन-रसीदा कौन था
हम तह-ए-दरिया तिलिस्मी बस्तियाँ गिनते रहे
अंधेरे में तजस्सुस का तक़ाज़ा छोड़ जाना है