बहुत मोहतात हो कर साँस लेना मो'तबर हो तुम
हमारा क्या है हम तो ख़ुद ही अपनी रद में रहते हैं
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Habib Jalib
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Anwar Masood
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(604) Peoples Rate This
ज़हर में डूबी हुई परछाइयों का रक़्स है
रफ़्ता रफ़्ता ख़त्म क़िस्सा हो गया होना ही था
सरों के बोझ को शानों पे रखना मोजज़ा भी है
यहाँ तो हर घड़ी कोह-ए-निदा की ज़द में रहते हैं
सुकूत-ए-शब के हाथों सोंप कर वापस बुलाता है
इस सफ़र में नीम-जाँ मैं भी नहीं तू भी नहीं
वो जिन की हिजरतों के आज भी कुछ दाग़ रौशन हैं
सौंपोगे अपने बा'द विरासत में क्या मुझे
हम तह-ए-दरिया तिलिस्मी बस्तियाँ गिनते रहे
इंकिशाफ़-ए-ज़ात के आगे धुआँ है और बस
न जाने कब कोई आ कर मिरी तकमील कर जाए