पकड़ने वाले हैं सब ख़ेमे आग और बेहोश
पड़े हैं क़ाफ़िला-सालार मिशअलों के क़रीब
Jaun Eliya
Anwar Masood
Wasi Shah
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Habib Jalib
Gulzar
Parveen Shakir
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न जाने कब से बराबर मिरी तलाश में है
जिन को दीवार-ओ-दर भी ढक न सके
चराग़ बन के जली थी मैं जिस की महफ़िल में
ज़रा मुश्किल से समझेंगे हमारे तर्जुमाँ हम को
उस की हर बात समझ कर भी मैं अंजान रही
ज़िंदगी के सारे मौसम आ के रुख़्सत हो गए
जाने कितने राज़ खुलें जिस दिन चेहरों की राख धुले
हटा के मेज़ से इक रोज़ आईना मैं ने
चमन पे बस न चला वर्ना ये चमन वाले
आप भी रेत का मल्बूस पहन कर देखें
कोई मौसम मेरी उम्मीदों को रास आया नहीं
मुझे कहाँ मिरे अंदर से वो निकालेगा