जिन को दीवार-ओ-दर भी ढक न सके
इस क़दर बे-लिबास हैं कुछ लोग
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Gulzar
Allama Iqbal
Habib Jalib
Anwar Masood
Parveen Shakir
Wasi Shah
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निकलना ख़ुद से मुमकिन है न मुमकिन वापसी मेरी
ये हौसला भी किसी रोज़ कर के देखूँगी
मैं रौशनी हूँ तो मेरी पहुँच कहाँ तक है
ज़िंदगी भर मैं खुली छत पे खड़ी भीगा की
अलावा इक चुभन के क्या है ख़ुद से राब्ता मेरा
कुरेदता है बहुत राख मेरे माज़ी की
हमें दी जाएगी फाँसी हमारे अपने जिस्मों में
लगाए पीठ बैठी सोचती रहती थी मैं जिस से
शिव तो नहीं हम फिर भी हम ने दुनिया भर के ज़हर पिए
बुझा के रख गया है कौन मुझ को ताक़-ए-निस्याँ पर
आप भी रेत का मल्बूस पहन कर देखें
ज़र्द चेहरों की किताबें भी हैं कितनी मक़्बूल