कहने वाला ख़ुद तो सर तकिए पे रख कर सो गया
मेरी बे-चारी कहानी रात भर रोती रही
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इक वही खोल सका सातवाँ दर मुझ पे मगर
शिव तो नहीं हम फिर भी हम ने दुनिया भर के ज़हर पिए
मैं भी साहिल की तरह टूट के बह जाती हूँ
मैं अपने जिस्म में रहती हूँ इस तकल्लुफ़ से
जाने कितने राज़ खुलें जिस दिन चेहरों की राख धुले
आप भी रेत का मल्बूस पहन कर देखें
वक़्त हाकिम है किसी रोज़ दिला ही देगा
वो इक नज़र से मुझे बे-असास कर देगा
हम ने सब को मुफ़्लिस पा के तोड़ दिया दिल का कश्कोल
किस क़दर कम-असास हैं कुछ लोग
लहू से उठ के घटाओं के दिल बरसते हैं
मेरी ख़ल्वत में जहाँ गर्द जमी पाई गई