Hope Poetry of Aziz Hamid Madni

Hope Poetry of Aziz Hamid Madni
नामअज़ीज़ हामिद मदनी
अंग्रेज़ी नामAziz Hamid Madni
जन्म की तारीख1922
मौत की तिथि1991

बहार चाक-ए-गिरेबाँ में ठहर जाती है

ज़ंजीर-ए-पा से आहन-ए-शमशीर है तलब

वो एक रौ जो लब-ए-नुक्ता-चीं में होती है

वही दाग़-ए-लाला की बात है कि ब-नाम-ए-हुस्न उधर गई

ताज़ा हवा बहार की दिल का मलाल ले गई

सूरत-ए-ज़ंजीर मौज-ए-ख़ूँ में इक आहंग है

सँभल न पाए तो तक़्सीर-ए-वाक़ई भी नहीं

सब पेच-ओ-ताब-ए-शौक़ के तूफ़ान थम गए

नरमी हवा की मौज-ए-तरब-ख़ेज़ अभी से है

नक़्शे उसी के दिल में हैं अब तक खिंचे हुए

न फ़ासले कोई निकले न क़ुर्बतें निकलीं

मिरी आँखें गवाह-ए-तल'अत-ए-आतिश हुईं जल कर

ख़त्म हुई शब-ए-वफ़ा ख़्वाब के सिलसिले गए

जूयान-ए-ताज़ा-कारी-ए-गुफ़्तार कुछ कहो

हिकायत-ए-हुस्न-ए-यार लिखना हदीस-ए-मीना-ओ-जाम कहना

हवा आशुफ़्ता-तर रखती है हम आशुफ़्ता-हालों को

फ़िराक़ से भी गए हम विसाल से भी गए

इक ख़्वाब-ए-आतिशीं का वो महरम सा रह गया

ऐ शहर-ए-ख़िरद की ताज़ा हवा वहशत का कोई इनआम चले

आज मुक़ाबला है सख़्त मीर-ए-सिपाह के लिए

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