Sharab Poetry of Aziz Hamid Madni

Sharab Poetry of Aziz Hamid Madni
नामअज़ीज़ हामिद मदनी
अंग्रेज़ी नामAziz Hamid Madni
जन्म की तारीख1922
मौत की तिथि1991

ज़हर का जाम ही दे ज़हर भी है आब-ए-हयात

उन को ऐ नर्म हवा ख़्वाब-ए-जुनूँ से न जगा

ताज़ा हवा बहार की दिल का मलाल ले गई

तल्ख़-तर और ज़रा बादा-ए-साफ़ी साक़ी

निसार यूँ तो हुआ तुझ पे नक़्द-ए-जाँ क्या क्या

नक़्शे उसी के दिल में हैं अब तक खिंचे हुए

मिरी आँखें गवाह-ए-तल'अत-ए-आतिश हुईं जल कर

लिखी हुई जो तबाही है उस से क्या जाता

क्या हुए बाद-ए-बयाबाँ के पुकारे हुए लोग

जी है बहुत उदास तबीअत हज़ीं बहुत

हिकायत-ए-हुस्न-ए-यार लिखना हदीस-ए-मीना-ओ-जाम कहना

हवा आशुफ़्ता-तर रखती है हम आशुफ़्ता-हालों को

एक-आध हरीफ़-ए-ग़म-ए-दुनिया भी नहीं था

ऐ शहर-ए-ख़िरद की ताज़ा हवा वहशत का कोई इनआम चले

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