तुम पे इल्ज़ाम न आ जाए सफ़र में कोई
रास्ता कितना ही दुश्वार हो ठहरा न करो
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इतने नज़दीक से आईने को देखा न करो
हर जगह आप ने मुम्ताज़ बनाया है मुझे
मुझ से ये पूछ रहे हैं मिरे अहबाब 'अज़ीज़'
ख़ुशी महसूस करता हूँ न ग़म महसूस करता हूँ
इक वक़्त था कि दिल को सुकूँ की तलाश थी
मिरी तक़दीर से पहले सँवरना जिन का मुश्किल है
ये हम पर लुत्फ़ कैसा ये करम क्या
मोहतसिब आओ चलें आज तो मय-ख़ाने में
दिल में अब कुछ भी नहीं उन की मोहब्बत के सिवा
इक हम कि उन के वास्ते महव-ए-फ़ुग़ाँ रहे
सोज़िश-ए-ग़म के सिवा काहिश-ए-फ़ुर्क़त के सिवा