ज़फ़र कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ज़फ़र (page 3)

ज़फ़र कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ज़फ़र (page 3)
नामज़फ़र
अंग्रेज़ी नामBahadur Shah Zafar
जन्म की तारीख1775
मौत की तिथि1862
जन्म स्थानDelhi

वाँ इरादा आज उस क़ातिल के दिल में और है

टुकड़े नहीं हैं आँसुओं में दिल के चार पाँच

तुफ़्ता-जानों का इलाज ऐ अहल-ए-दानिश और है

शाने की हर ज़बाँ से सुने कोई लाफ़-ए-ज़ुल्फ़

शमशीर-ए-बरहना माँग ग़ज़ब बालों की महक फिर वैसी ही

सब रंग में उस गुल की मिरे शान है मौजूद

रुख़ जो ज़ेर-ए-सुंबल-ए-पुर-पेच-ओ-ताब आ जाएगा

क़ारूँ उठा के सर पे सुना गंज ले चला

पान की सुर्ख़ी नहीं लब पर बुत-ए-ख़ूँ-ख़्वार के

पान खा कर सुर्मा की तहरीर फिर खींची तो क्या

निबाह बात का उस हीला-गर से कुछ न हुआ

नहीं इश्क़ में इस का तो रंज हमें कि क़रार ओ शकेब ज़रा न रहा

न उस का भेद यारी से न अय्यारी से हाथ आया

न दरवेशों का ख़िर्क़ा चाहिए न ताज-ए-शाहाना

न दो दुश्नाम हम को इतनी बद-ख़़ूई से क्या हासिल

न दाइम ग़म है ने इशरत कभी यूँ है कभी वूँ है

मोहब्बत चाहिए बाहम हमें भी हो तुम्हें भी हो

मर गए ऐ वाह उन की नाज़-बरदारी में हम

मैं हूँ आसी कि पुर-ख़ता कुछ हूँ

लगता नहीं है दिल मिरा उजड़े दयार में

क्यूँकि हम दुनिया में आए कुछ सबब खुलता नहीं

क्यूँकर न ख़ाकसार रहें अहल-ए-कीं से दूर

क्या कुछ न किया और हैं क्या कुछ नहीं करते

क्या कहूँ दिल माइल-ए-ज़ुल्फ़-ए-दोता क्यूँकर हुआ

ख़्वाह कर इंसाफ़ ज़ालिम ख़्वाह कर बेदाद तू

करेंगे क़स्द हम जिस दम तुम्हारे घर में आवेंगे

काफ़िर तुझे अल्लाह ने सूरत तो परी दी

जिगर के टुकड़े हुए जल के दिल कबाब हुआ

जब कि पहलू में हमारे बुत-ए-ख़ुद-काम न हो

जब कभी दरिया में होते साया-अफ़गन आप हैं

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