Sad Poetry of Bahadur Shah Zafar

Sad Poetry of Bahadur Shah Zafar
नामज़फ़र
अंग्रेज़ी नामBahadur Shah Zafar
जन्म की तारीख1775
मौत की तिथि1862
जन्म स्थानDelhi

'ज़फ़र' आदमी उस को न जानिएगा वो हो कैसा ही साहब-ए-फ़हम-ओ-ज़का

ये क़िस्सा वो नहीं तुम जिस को क़िस्सा-ख़्वाँ से सुनो

तुम ने किया न याद कभी भूल कर हमें

मैं सिसकता रह गया और मर गए फ़रहाद ओ क़ैस

दिल को दिल से राह है तो जिस तरह से हम तुझे

बुलबुल को बाग़बाँ से न सय्याद से गिला

बे-ख़ुदी में ले लिया बोसा ख़ता कीजे मुआफ़

ज़ुल्फ़ जो रुख़ पर तिरे ऐ मेहर-ए-तलअत खुल गई

ये क़िस्सा वो नहीं तुम जिस को क़िस्सा-ख़्वाँ से सुनो

याँ ख़ाक का बिस्तर है गले में कफ़नी है

वो सौ सौ अठखटों से घर से बाहर दो क़दम निकले

वाक़िफ़ हैं हम कि हज़रत-ए-ग़म ऐसे शख़्स हैं

वाँ रसाई नहीं तो फिर क्या है

टुकड़े नहीं हैं आँसुओं में दिल के चार पाँच

तुफ़्ता-जानों का इलाज ऐ अहल-ए-दानिश और है

रुख़ जो ज़ेर-ए-सुंबल-ए-पुर-पेच-ओ-ताब आ जाएगा

क़ारूँ उठा के सर पे सुना गंज ले चला

निबाह बात का उस हीला-गर से कुछ न हुआ

नहीं इश्क़ में इस का तो रंज हमें कि क़रार ओ शकेब ज़रा न रहा

न दरवेशों का ख़िर्क़ा चाहिए न ताज-ए-शाहाना

न दो दुश्नाम हम को इतनी बद-ख़़ूई से क्या हासिल

न दाइम ग़म है ने इशरत कभी यूँ है कभी वूँ है

मोहब्बत चाहिए बाहम हमें भी हो तुम्हें भी हो

मर गए ऐ वाह उन की नाज़-बरदारी में हम

लगता नहीं है दिल मिरा उजड़े दयार में

क्यूँकर न ख़ाकसार रहें अहल-ए-कीं से दूर

क्या कुछ न किया और हैं क्या कुछ नहीं करते

क्या कहूँ दिल माइल-ए-ज़ुल्फ़-ए-दोता क्यूँकर हुआ

ख़्वाह कर इंसाफ़ ज़ालिम ख़्वाह कर बेदाद तू

करेंगे क़स्द हम जिस दम तुम्हारे घर में आवेंगे

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