Heart Broken Poetry of Bashir Badr (page 3)

Heart Broken Poetry of Bashir Badr (page 3)
नामबशीर बद्र
अंग्रेज़ी नामBashir Badr
जन्म की तारीख1935
जन्म स्थानBhopal

लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में

कोई फूल धूप की पत्तियों में हरे रिबन से बँधा हुआ

किसी की याद में पलकें ज़रा भिगो लेते

ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे

ख़ानदानी रिश्तों में अक्सर रक़ाबत है बहुत

कौन आया रास्ते आईना-ख़ाने हो गए

कहीं चाँद राहों में खो गया कहीं चाँदनी भी भटक गई

कभी यूँ भी आ मिरी आँख में कि मिरी नज़र को ख़बर न हो

कभी तो शाम ढले अपने घर गए होते

जब तक निगार-ए-दाश्त का सीना दुखा न था

जब सहर चुप हो हँसा लो हम को

जब रात की तन्हाई दिल बन के धड़कती है

होंटों पे मोहब्बत के फ़साने नहीं आते

हँसी मासूम सी बच्चों की कापी में इबारत सी

हमारे पास तो आओ बड़ा अंधेरा है

हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाए

है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है

ग़ज़लों का हुनर अपनी आँखों को सिखाएँगे

घर से निकले अगर हम बहक जाएँगे

फ़लक से चाँद सितारों से जाम लेना है

इक परी के साथ मौजों पर टहलता रात को

दिल में इक तस्वीर छुपी थी आन बसी है आँखों में

चाय की प्याली में नीली टेबलेट घोली

भीगी हुई आँखों का ये मंज़र न मिलेगा

बे-तहाशा सी ला-उबाली हँसी

अगर यक़ीं नहीं आता तो आज़माए मुझे

अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जाएगा

अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गया

अभी इस तरफ़ न निगाह कर मैं ग़ज़ल की पलकें सँवार लूँ

अब तो अँगारों के लब चूम के सो जाएँगे

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