Islamic Poetry of Bashir Badr

Islamic Poetry of Bashir Badr
नामबशीर बद्र
अंग्रेज़ी नामBashir Badr
जन्म की तारीख1935
जन्म स्थानBhopal

उतर भी आओ कभी आसमाँ के ज़ीने से

सब लोग अपने अपने ख़ुदाओं को लाए थे

फिर से ख़ुदा बनाएगा कोई नया जहाँ

मैं ने दिन रात ख़ुदा से ये दुआ माँगी थी

महक रही है ज़मीं चाँदनी के फूलों से

किसी ने चूम के आँखों को ये दुआ दी थी

ख़ुदा की इतनी बड़ी काएनात में मैं ने

ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे

ख़ुदा ऐसे एहसास का नाम है

गले में उस के ख़ुदा की अजीब बरकत है

वो चाँदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है

वो अपने घर चला गया अफ़्सोस मत करो

वही ताज है वही तख़्त है वही ज़हर है वही जाम है

उदास रात है कोई तो ख़्वाब दे जाओ

सोचा नहीं अच्छा बुरा देखा सुना कुछ भी नहीं

सर-ए-राह कुछ भी कहा नहीं कभी उस के घर मैं गया नहीं

सर से पा तक वो गुलाबों का शजर लगता है

सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा

सँवार नोक-पलक अबरुओं में ख़म कर दे

मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला

मिरी ज़बाँ पे नए ज़ाइक़ों के फल लिख दे

मिरी नज़र में ख़ाक तेरे आइने पे गर्द है

मेरी आँखों में तिरे प्यार का आँसू आए

मेरे दिल की राख कुरेद मत इसे मुस्कुरा के हवा न दे

ख़ून पत्तों पे जमा हो जैसे

ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे

जब तक निगार-ए-दाश्त का सीना दुखा न था

फ़लक से चाँद सितारों से जाम लेना है

चमक रही है परों में उड़ान की ख़ुशबू

बे-तहाशा सी ला-उबाली हँसी

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