Hope Poetry of Bashir Badr

Hope Poetry of Bashir Badr
नामबशीर बद्र
अंग्रेज़ी नामBashir Badr
जन्म की तारीख1935
जन्म स्थानBhopal

वो बड़ा रहीम ओ करीम है मुझे ये सिफ़त भी अता करे

उस की आँखों को ग़ौर से देखो

तिरी आरज़ू तिरी जुस्तुजू में भटक रहा था गली गली

नए दौर के नए ख़्वाब हैं नए मौसमों के गुलाब हैं

न जी भर के देखा न कुछ बात की

मेरा शैतान मर गया शायद

मैं ने दिन रात ख़ुदा से ये दुआ माँगी थी

किसी ने चूम के आँखों को ये दुआ दी थी

कमरे वीराँ आँगन ख़ाली फिर ये कैसी आवाज़ें

दुआ करो कि ये पौदा सदा हरा ही लगे

भूल शायद बहुत बड़ी कर ली

अजब चराग़ हूँ दिन रात जलता रहता हूँ

अभी राह में कई मोड़ हैं कोई आएगा कोई जाएगा

यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो

ये चराग़ बे-नज़र है ये सितारा बे-ज़बाँ है

वो चाँदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है

वो अपने घर चला गया अफ़्सोस मत करो

शो'ला-ए-गुल गुलाब शो'ला क्या

शबनम के आँसू फूल पर ये तो वही क़िस्सा हुआ

सँवार नोक-पलक अबरुओं में ख़म कर दे

पिछली रात की नर्म चाँदनी शबनम की ख़ुनकी से रचा है

पहला सा वो ज़ोर नहीं है मेरे दुख की सदाओं में

न जी भर के देखा न कुछ बात की

मेरी आँखों में तिरे प्यार का आँसू आए

मेरे दिल की राख कुरेद मत इसे मुस्कुरा के हवा न दे

कोई फूल धूप की पत्तियों में हरे रिबन से बँधा हुआ

ख़ुशबू की तरह आया वो तेज़ हवाओं में

कहीं चाँद राहों में खो गया कहीं चाँदनी भी भटक गई

कभी यूँ भी आ मिरी आँख में कि मिरी नज़र को ख़बर न हो

जब तक निगार-ए-दाश्त का सीना दुखा न था

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