हवा-ए-इश्क़ ने भी गुल खिलाए हैं क्या क्या
जो मेरा हाल था वो तेरा हाल होने लगा
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नए ज़माने में अब ये कमाल होने लगा
मुझ को शिकस्तगी का क़लक़ देर तक रहा
बदन की आँच से सँवला गए हैं पैराहन
ख़ुदा करे मिरा मुंसिफ़ सज़ा सुनाने पर
हम चटानों की तरह साहिल पे ढाले जाएँगे
रहीन-ए-आस रही है न महव-ए-यास रही
दौर-ए-हाज़िर की बज़्म में 'बेकल'
मैं जब भी कोई अछूता कलाम लिखता हूँ
अज़्म-ए-मोहकम हो तो होती हैं बलाएँ पसपा
फ़र्श ता अर्श कोई नाम-ओ-निशाँ मिल न सका
किवाड़ बंद करो तीरा-बख़्तो सो जाओ