यूँ तो कई किताबें पढ़ीं ज़ेहन में मगर
महफ़ूज़ एक सादा वरक़ देर तक रहा
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Wasi Shah
Gulzar
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Anwar Masood
Habib Jalib
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न जाने कौन सा नश्शा है उन पे छाया हुआ
बीच सड़क इक लाश पड़ी थी और ये लिक्खा था
ख़ुद अपने जुर्म का मुजरिम को ए'तिराफ़ न था
हवा-ए-इश्क़ ने भी गुल खिलाए हैं क्या क्या
वो थे जवाब के साहिल पे मुंतज़िर लेकिन
लोग तो जा के समुंदर को जला आए हैं
इश्क़-विश्क़ ये चाहत-वाहत मन का भुलावा फिर मन भी अपना क्या
जब कूचा-ए-क़ातिल में हम लाए गए होंगे
तो पहले मेरा ही हाल-ए-तबाह लिख लीजे
उस का जवाब एक ही लम्हे में ख़त्म था
फ़र्श ता अर्श कोई नाम-ओ-निशाँ मिल न सका
तमन्ना बन गई है माया-ए-इल्ज़ाम क्या होगा