देखा न तुम ने आँख उठा कर भी एक बार
गुज़रे हज़ार बार तुम्हारी गली से हम
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चमन को लग गई किस की नज़र ख़ुदा जाने
अल्लाह तेरे हाथ है अब आबरू-ए-शौक़
सारी उम्मीद रही जाती है
क्या करें जाम-ओ-सुबू हाथ पकड़ लेते हैं
ख़िज़ाँ जब तक चली जाती नहीं है
कहाँ आया है दीवानों को तेरा कुछ क़रार अब तक
एक दिन वो दिन थे रोने पे हँसा करते थे हम
जुरअत-ए-शौक़ तो क्या कुछ नहीं कहती लेकिन
तंग आ गए हैं क्या करें इस ज़िंदगी से हम
ये बुत फिर अब के बहुत सर उठा के बैठे हैं
मेरी दुआ कि ग़ैर पे उन की नज़र न हो
रहरव-ए-राह-ए-मोहब्बत रह न जाना राह में