Ghazals of Daniyal Tareer

Ghazals of Daniyal Tareer
नामदानियाल तरीर
अंग्रेज़ी नामDaniyal Tareer
जन्म की तारीख1980
जन्म स्थानQuetta

ये मो'जिज़ा भी दिखाती है सब्ज़ आग मुझे

उजाला ही उजाला रौशनी ही रौशनी है

तसलसुल से गुमाँ लिक्खा गया है

शहर से क्या गई जानिब-ए-दश्त-ए-ज़र ज़िंदगी फ़ाख़्ता

साकित हो मगर सब को रवानी नज़र आए

रेत मुट्ठी में भरी पानी से आग़ाज़ किया

रंग और नूर की तमसील से होगा कि नहीं

पानी के शीशों में रक्खी जाती है

नई नई सूरतें बदन पर उजालता हूँ

मिट्टी था और दूध में गूँधा गया मुझे

कोई सिवा-ए-बदन है न है वरा-ए-बदन

ख़्वाब-कारी वही कमख़्वाब वही है कि नहीं

ख़्वाब जज़ीरा बन सकते थे नहीं बने

खंडर ये फिर बसाने का इरादा ही नहीं था

ख़ामोशी की क़िर्अत करने वाले लोग

जरस और सारबानों तक पहुँचना चाहता है

गया कि सैल-ए-रवाँ का बहाव ऐसा था

एक बुझाओ एक जलाओ ख़्वाब का क्या है

चश्म-ए-वा ही न हुई जल्वा-नुमा क्या होता

चाँद छूने की तलबगार नहीं हो सकती

बिला-जवाज़ नहीं है फ़लक से जंग मिरी

ब-तर्ज़-ए-ख़्वाब सजानी पड़ी है आख़िर-कार

अजब रंग-ए-तिलस्म-ओ-तर्ज़-ए-नौ है

आग में जलते हुए देखा गया है

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