सर काट क्यूँ जलाते हैं रौशन दिलाँ के तईं
आहन-दिली पे ख़ल्क़ की ख़ंदाँ हूँ मिस्ल-ए-शम्अ'
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जब परी-रू हिजाब करते हैं
देखना है पिया की ज़ुल्फ़-ए-दराज़
फ़रियाद सदा-ए-नफ़स आवाज़-ए-जरस है
आज बदली है हवा साक़ी पिला जाम-ए-शराब
आतिश-ए-इश्क़ सूँ जो जलता है
अगर वो गुल-बदन मुझ पास हो जावे तो क्या होवे
मस्त हूँ मस्त हूँ ख़राब ख़राब
तेरी अँखियाँ के तसव्वुर में सदा मस्ताना हूँ
निगाह-ए-यार सूँ हासिल है मुझ कूँ मय-नोशी
दर्पन दिया हूँ दिल का मैं उस दिलरुबा के हाथ
दिलबर कूँ इताब ख़ूब है ख़ूब
मुझ साथ सैर-ए-बाग़ कूँ ऐ नौ-बहार चल