शीशा-ए-आबरू सँभाल ऐ दिल
दौर उल्टा चला है दुनिया का
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देख लटका सजन तेरी लट का
सर काट क्यूँ जलाते हैं रौशन दिलाँ के तईं
हर किताब-ए-सोहबत-ए-रंगीं के मअ'नी देख कर
दिल में ख़याल-ए-यार है जासूस की नमत
मुझ साथ सैर-ए-बाग़ कूँ ऐ नौ-बहार चल
अगर वो गुल-बदन मुझ पास हो जावे तो क्या होवे
सीना साफ़ी सूँ मिस्ल-ए-दर्पन कर
दिल कूँ दिलदार के नियाज़ करे
देखना है पिया की ज़ुल्फ़-ए-दराज़
मस्त हूँ मस्त हूँ ख़राब ख़राब
ले दाम-ए-निगाह-ए-यार आया
तुझ हिज्र की अगन कूँ बूझाने ऐ संग दिल