न गिर्द-ओ-पेश से इस दर्जा बे-नियाज़ गुज़र
जो बे-ख़बर से हैं सब की ख़बर भी रखते हैं
Wasi Shah
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Rahat Indori
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Gulzar
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लम्हा लम्हा मुझे वीरान किए देता है
फ़रिश्ता है तो तक़द्दुस तुझे मुबारक हो
रह गया ख़्वाब-ए-दिल-आराम अधूरा किस का
ये राह-ए-इश्क़ है आख़िर कोई मज़ाक़ नहीं
सारे नुक़ूश जिस पे तिरे आशियाँ के हैं
अदा-ए-हैरत-ए-आईना-गर भी रखते हैं
ये दिलचस्प वादे ये रंगीं दिलासे
इस शहर में तो कुछ नहीं रुस्वाई के सिवा
हसीं है शहर तो उजलत में क्यूँ गुज़र जाएँ
मैं सिर्फ़ वो नहीं जो नज़र आ गया तुझे
फिर मरहला-ए-ख़्वाब-ए-बहाराँ से गुज़र जा