फिर मरहला-ए-ख़्वाब-ए-बहाराँ से गुज़र जा
मौसम है सुहाना तो गरेबाँ से गुज़र जा
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कहाँ मैं अभी तक नज़र आ सका हूँ
लम्हा लम्हा मुझे वीरान किए देता है
ये राह-ए-इश्क़ है आख़िर कोई मज़ाक़ नहीं
अदा-ए-हैरत-ए-आईना-गर भी रखते हैं
ये दिलचस्प वादे ये रंगीं दिलासे
सारे नुक़ूश जिस पे तिरे आशियाँ के हैं
रह गया ख़्वाब-ए-दिल-आराम अधूरा किस का
फ़रिश्ता है तो तक़द्दुस तुझे मुबारक हो
हसीं है शहर तो उजलत में क्यूँ गुज़र जाएँ
मैं सिर्फ़ वो नहीं जो नज़र आ गया तुझे