एक शादी तो ठीक है लेकिन
एक दो तीन चार हद कर दी
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अल्लामा-'इक़बाल' को शिकवा
शोर से बच्चों के घबराते हैं घर पर और हम
ज़हर बीमार को मुर्दे को दवा दी जाए
अदब को जिंस-ए-बाज़ारी न करना
'ग़ालिब' को बुरा क्यूँ कहो
मर्दुम-गज़ीदा इंसान का इलाज
अहमक़ों की कांफ्रेंस
चालीस चोर
तमाशा मिरे आगे
लैला मजनूँ की शादी
स्टेज पर पड़ा था जो पर्दा वो उठ चुका