सुनता हूँ सुरंगों थे फ़रिश्ते मिरे हुज़ूर
मैं जाने अपनी ज़ात के किस मरहले में था
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हाँ आप को देखा था मोहब्बत से हमीं ने
हवा के सय्याल बाज़ुओं पर घटा के शब-रंग कारवाँ हैं
मैं हैराँ हूँ कि क्यूँ उस से हुई थी दोस्ती अपनी
यूँ न मिल मुझ से ख़फ़ा हो जैसे
दिल की शगुफ़्तगी के साथ राहत-ए-मय-कदा गई
मिरे मिटाने की तदबीर थी हिजाब न था
वफ़ा का अहद था दिल को सँभालने के लिए
न सियो होंट न ख़्वाबों में सदा दो हम को
आया नहीं है राह पे चर्ख़-ए-कुहन अभी
बख़्श दी हाल-ए-ज़बूँ ने जल्वा-सामानी मुझे
भूरे भूरे बादलों से आसमाँ लबरेज़ है
जब किसी की याद आ कर तिलमिला जाता है दिल