अहल-ए-दुनिया से मुझे तो कोई अंदेशा न था
नाम तेरा किस लिए मिरे लबों पर जम गया
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ढूँड साया न शजर आगे भी
फ़ज़ा-ए-शाम ज़िया-ए-सहर उसी से मिली
हादसों का सिलसिला मंज़र-ब-मंज़र जम गया
बज़्म-ए-तन्हाई में अक्स-ए-शो'ला-पैकर था कोई
मुंतशिर हर शय क़रीने से सजा दी जाएगी
तौक़ीर अँधेरों की बढ़ा दी गई शायद
शेर के रूप में देते रहना
याद था 'सुक़रात' का क़िस्सा सभी को 'एहतिराम'
ग़ैज़ का सूरज था सर पर सच को सच कहता तो कौन