इस बार भी शोलों ने मचा डाली तबाही
इस बार भी शोलों को हवा दी गई शायद
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शेर के रूप में देते रहना
अहल-ए-दुनिया से मुझे तो कोई अंदेशा न था
बज़्म-ए-तन्हाई में अक्स-ए-शो'ला-पैकर था कोई
सुर्ख़ मौसम की कहानी है पुरानी हो न हो
ग़ैज़ का सूरज था सर पर सच को सच कहता तो कौन
तौक़ीर अँधेरों की बढ़ा दी गई शायद
हादसों का सिलसिला मंज़र-ब-मंज़र जम गया
फ़ज़ा-ए-शाम ज़िया-ए-सहर उसी से मिली
उसी से मुझ को मिला इश्तियाक़ मंज़िल का
ढूँड साया न शजर आगे भी
लड़खड़ा कर गिर पड़ी ऊँची इमारत दफ़अतन