उसी से मुझ को मिला इश्तियाक़ मंज़िल का
मिरे सफ़र को फ़ज़ा-ए-सफ़र उसी से मिली
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हादसों का सिलसिला मंज़र-ब-मंज़र जम गया
तौक़ीर अँधेरों की बढ़ा दी गई शायद
साथ रखिए काम आएगा बहुत नाम-ए-ख़ुदा
इस बार भी शोलों ने मचा डाली तबाही
फ़ज़ा-ए-शाम ज़िया-ए-सहर उसी से मिली
ढूँड साया न शजर आगे भी
मुंतशिर हर शय क़रीने से सजा दी जाएगी
बज़्म-ए-तन्हाई में अक्स-ए-शो'ला-पैकर था कोई
लड़खड़ा कर गिर पड़ी ऊँची इमारत दफ़अतन