तुम्हारी याद से ये रात कितनी रौशन है
नज़र में इतने हैं जुगनू कि हम गिनाएँ क्या
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दोस्ती में न दुश्मनी में हम
जाएँगे एक रोज़ समुंदर की गोद में
न बात दिल की सुनूँ मैं न दिल सुने मेरी
शाम ख़ामोश है पेड़ों पे उजाला कम है
वाक़िफ़ कहाँ ज़माना हमारी उड़ान से
रस्ते में 'फहीम' उस की तबीअत का बिगड़ना
किसी के दर पे सज्दा करते करते
मरघट पथ पर देख के हम को जाने क्या क्या सोचें वो
मिलन के ब'अद आती है जुदाई
बंद कमरे में तिरा दर्द न बुझ जाए कहीं
कितने तूफ़ानों से हम उलझे तुझे मालूम क्या