Sad Poetry of Farhat Ehsas (page 3)
नाम | फ़रहत एहसास |
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अंग्रेज़ी नाम | Farhat Ehsas |
जन्म की तारीख | 1952 |
जन्म स्थान | Delhi |
कुछ भी न कहना कुछ भी न सुनना लफ़्ज़ में लफ़्ज़ उतरने देना
कुछ बताता नहीं क्या सानेहा कर बैठा है
ख़ुदा ख़ामोश बंदे बोलते हैं
ख़ुद से इंकार को हम-ज़ाद किया है मैं ने
ख़ूब होनी है अब इस शहर में रुस्वाई मिरी
ख़त बहुत उस के पढ़े हैं कभी देखा नहीं है
ख़ाना-साज़ उजाला मार
ख़ाक ओ ख़ूँ की नई तंज़ीम में शामिल हो जाओ
ख़ाक है मेरा बदन ख़ाक ही उस का होगा
खड़ी है रात अंधेरों का अज़दहाम लगाए
कैसी बला-ए-जाँ है ये मुझ को बदन किए हुए
कभी हँसते नहीं कभी रोते नहीं कभी कोई गुनाह नहीं करते
काबा-ए-दिल दिमाग़ का फिर से ग़ुलाम हो गया
जो इश्क़ चाहता है वो होना नहीं है आज
जिस्म की क़ैद से सब रंग तुम्हारे निकल आए
जिस्म की कुछ और अभी मिट्टी निकाल
जिस्म जब महव-ए-सुख़न हों शब-ए-ख़ामोशी से
जिस को जैसा भी है दरकार उसे वैसा मिल जाए
झगड़े ख़ुदा से हो गए अहद-ए-शबाब में
जब उस को देखते रहने से थकने लगता हूँ
इश्क़ में कितने बुलंद इम्कान हो जाते हैं हम
इस तरह आता हूँ बाज़ारों के बीच
ईमाँ का लुत्फ़ पहलू-ए-तश्कीक में मिला
हम ने परिंद-ए-वस्ल के पर काट डाले हैं
हम न प्यासे हैं न पानी के लिए आए हैं
हम अपने आप को अपने से कम भी करते रहते हैं
हुई इक ख़्वाब से शादी मिरी तन्हाई की
हर गली कूचे में रोने की सदा मेरी है
हर इक जानिब उन आँखों का इशारा जा रहा है
हमेशा का ये मंज़र है कि सहरा जल रहा है