Khawab Poetry of Farhat Ehsas

Khawab Poetry of Farhat Ehsas
नामफ़रहत एहसास
अंग्रेज़ी नामFarhat Ehsas
जन्म की तारीख1952
जन्म स्थानDelhi

जब उस को देखते रहने से थकने लगता हूँ

ना-रसाई

दुनिया को कहाँ तक जाना है

आग़ाज़ की तारीख़

ज़मीं से अर्श तलक सिलसिला हमारा भी था

ज़मीं ने लफ़्ज़ उगाया नहीं बहुत दिन से

वस्ल की रात में हम रात में बह जाते हैं

उम्र बे-वज्ह गुज़ारे भी नहीं जा सकते

उधर वो दश्त-ए-मुसलसल इधर मुसलसल मैं

साहिब-ए-इश्क़ अब इतनी सी तो राहत मुझे दे

पुराना ज़ख़्म जिसे तजरबा ज़ियादा है

फिर वही मौसम-ए-जुदाई है

पहले तो ज़रा सा हट के देखा

ना-क़ाबिल-ए-यक़ीं था अगरचे शुरूअ' में

नंग धड़ंग मलंग तरंग में आएगा जो वही काम करेंगे

मिरे सुबूत बहे जा रहे हैं पानी में

मैं तमाम गर्द-ओ-ग़ुबार हूँ मुझे मेरी सूरत-ए-हाल दे

मैं अपने रू-ए-हक़ीक़त को खो नहीं सकता

ख़त बहुत उस के पढ़े हैं कभी देखा नहीं है

झगड़े ख़ुदा से हो गए अहद-ए-शबाब में

जब उस को देखते रहने से थकने लगता हूँ

इस तरह आता हूँ बाज़ारों के बीच

हुई इक ख़्वाब से शादी मिरी तन्हाई की

हर इक जानिब उन आँखों का इशारा जा रहा है

है शोर साहिलों पर सैलाब आ रहा है

एक ग़ज़ल कहते हैं इक कैफ़िय्यत तारी कर लेते हैं

दिनी हैं सब कोई राती नहीं है

देखते ही देखते खोने से पहले देखते

बीमार हो गया हूँ शिफा-ख़ाना चाहिए

बहुत सी आँखें लगीं हैं और एक ख़्वाब तय्यार हो रहा है

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