Islamic Poetry of Farhat Ehsas

Islamic Poetry of Farhat Ehsas
नामफ़रहत एहसास
अंग्रेज़ी नामFarhat Ehsas
जन्म की तारीख1952
जन्म स्थानDelhi

तमाम पैकर-ए-बदसूरती है मर्द की ज़ात

ऐ ख़ुदा मेरी रगों में दौड़ जा

उस तरफ़

तराना-ए-रेख़्ता

लहर का ठहराओ

ज़मीं ने लफ़्ज़ उगाया नहीं बहुत दिन से

ये सारे ख़ूबसूरत जिस्म अभी मर जाने वाले हैं

वो महफ़िलें पुरानी अफ़्साना हो रही हैं

वहाँ मैं जाऊँ मगर कुछ मिरा भला भी तो हो

सूने सियाह शहर पे मंज़र-पज़ीर मैं

साहिब-ए-इश्क़ अब इतनी सी तो राहत मुझे दे

सब ने'मतें हैं शहर में इंसान ही नहीं

सब मिरा आब-ए-रवाँ किस के इशारों पे बहा जाता है

रक़्स-ए-इल्हाम कर रहा हूँ

रात बहुत शराब पी रात बहुत पढ़ी नमाज़

पुराना ज़ख़्म जिसे तजरबा ज़ियादा है

ना-क़ाबिल-ए-यक़ीं था अगरचे शुरूअ' में

मिला है जिस्म कि उस का गुमाँ मिला है मुझे

मेरी मिट्टी का नसब बे-सर-ओ-सामानी से

मिरे सुबूत बहे जा रहे हैं पानी में

मैं अपने रू-ए-हक़ीक़त को खो नहीं सकता

लगे हुए हैं ज़माने के इंतिज़ाम में हम

क्या बैठ जाएँ आन के नज़दीक आप के

ख़ुदा ख़ामोश बंदे बोलते हैं

ख़ुद से इंकार को हम-ज़ाद किया है मैं ने

ख़लल आया न हक़ीक़त में न अफ़्साना बना

कभी ख़ुदा कभी इंसान रोक लेता है

जिस्म की कुछ और अभी मिट्टी निकाल

जिस तरह पैदा हुए उस से जुदा पैदा करो

जिस को जैसा भी है दरकार उसे वैसा मिल जाए

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