Sad Poetry of Farhat Ehsas

Sad Poetry of Farhat Ehsas
नामफ़रहत एहसास
अंग्रेज़ी नामFarhat Ehsas
जन्म की तारीख1952
जन्म स्थानDelhi

वो जो इक शोर सा बरपा है अमल है मेरा

वो चाँद कह के गया था कि आज निकलेगा

उसे ख़बर थी कि हम विसाल और हिज्र इक साथ चाहते हैं

तिरे होंटों के सहरा में तिरी आँखों के जंगल में

तभी वहीं मुझे उस की हँसी सुनाई पड़ी

मैं रोना चाहता हूँ ख़ूब रोना चाहता हूँ मैं

किसी हालत में भी तन्हा नहीं होने देती

कभी इस रौशनी की क़ैद से बाहर भी निकलो तुम

जान ये सरकशी-ए-जिस्म तिरे बस की नहीं

हिज्र ओ विसाल चराग़ हैं दोनों तन्हाई के ताक़ों में

हमारा ज़िंदा रहना और मरना एक जैसा है

दो अलग लफ़्ज़ नहीं हिज्र ओ विसाल

ऐ सदफ़ सुन तुझे फिर याद दिला देता हूँ

आँखों की प्यालियों में बारिश मची हुई है

सुकूत

शेर कह लेने के बाद

साँप

ख़ुद-आगही

गुनाहों की धुँद

दुनिया को कहाँ तक जाना है

बिछड़े घर का साया

अगर मैं चीख़ूँ

ज़मीं से अर्श तलक सिलसिला हमारा भी था

ज़मीं ने लफ़्ज़ उगाया नहीं बहुत दिन से

ये बाग़ ज़िंदा रहे ये बहार ज़िंदा रहे

यही हिसाब-ए-मोहब्बत दोबारा कर के लाओ

वो महफ़िलें पुरानी अफ़्साना हो रही हैं

वस्ल की रात में हम रात में बह जाते हैं

वहाँ मैं जाऊँ मगर कुछ मिरा भला भी तो हो

उस तरफ़ तू तिरी यकताई है

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