Sad Poetry of Farhat Ehsas (page 4)
नाम | फ़रहत एहसास |
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अंग्रेज़ी नाम | Farhat Ehsas |
जन्म की तारीख | 1952 |
जन्म स्थान | Delhi |
हमें जब अपना तआरुफ़ कराना पड़ता है
है शोर साहिलों पर सैलाब आ रहा है
घर बनाने में तमाम अहल-ए-सफ़र लग गए हैं
गर अपने आप में इंसान बढ़ता जा रहा है
इक हवा आई है दीवार में दर करने को
दिन ने इतना जो मरीज़ाना बना रक्खा है
दिल ने इमदाद कभी हस्ब-ए-ज़रूरत नहीं दी
देखते ही देखते खोने से पहले देखते
देखो अभी लहू की इक धार चल रही है
दबा पड़ा है कहीं दश्त में ख़ज़ाना मिरा
चराग़-ए-शहर से शम-ए-दिल-ए-सहरा जलाना
बुझ गए सारे चराग़-ए-जिस्म-ओ-जाँ तब दिल जला
बीमार हो गया हूँ शिफा-ख़ाना चाहिए
बे-रंग बड़े शहर की हस्ती भी वहीं थी
बहुत ज़मीन बहुत आसमाँ मिलेंगे तुम्हें
बहुत सी आँखें लगीं हैं और एक ख़्वाब तय्यार हो रहा है
बहुत मुमकिन था हम दो जिस्म और इक जान हो जाते
अजीब तजरबा आँखों को होने वाला था
अहल-ए-बदन को इश्क़ है बाहर की कोई चीज़
अभी नहीं कि अभी महज़ इस्तिआरा बना
अब दिल की तरफ़ दर्द की यलग़ार बहुत है
आख़िर उस के हुस्न की मुश्किल को हल मैं ने किया