आसमानों पे उड़ो ज़ेहन में रक्खो कि जो चीज़
ख़ाक से उठती है वो ख़ाक पे आ जाती है
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ये दिल-कथा है अदाकार तेरे बस में नहीं
सफ़-ए-मातम पे जो हम नाचने गाने लग जाएँ
वो अपनी ज़ात में गुम था नहीं खुला मिरे साथ
कीसा-ए-गुल में बंद थी ख़ुशबू
रंग-ओ-ख़ुशबू का कहीं कोई करे ज़िक्र तो बात
दर-ए-फ़क़ीर पे जो आए वो दुआ ले जाए
गुँध के मिट्टी जो कभी चाक पे आ जाती है
तिरे ख़िलाफ़ किया जब भी एहतिजाज ऐ दोस्त
गली का पत्थर था मुझ में आया बिगाड़ ऐसा
इश्क़ हूँ जुरअत-ए-इज़हार भी कर सकता हूँ
सर पे हर्फ़ आता है दस्तार पे हर्फ़ आता है