इस तमाशे का सबब वर्ना कहाँ बाक़ी है
अब भी कुछ लोग हैं ज़िंदा कि जहाँ बाक़ी है
Habib Jalib
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Jaun Eliya
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Parveen Shakir
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सबब थी फ़ितरत-ए-इंसाँ ख़राब मौसम का
इसी फ़ुतूर में कर्ब-ओ-बला से लिपटे हुए
सुब्ह होती है तो दफ़्तर में बदल जाता है
बंद हो जाता है कूज़े में कभी दरिया भी
अदा हुआ न क़र्ज़ और वजूद ख़त्म हो गया
हम इब्तिदा ही में पहुँचे थे इंतिहा को कभी
मैं उस की बातों में ग़म अपना भूल जाता मगर
सुराग़ भी न मिले अजनबी सदा के मुझे
मैं अपनी रूह लिए दर-ब-दर भटकता रहा