Khawab Poetry of Habeeb Musvi

Khawab Poetry of Habeeb Musvi
नामहबीब मूसवी
अंग्रेज़ी नामHabeeb Musvi

चाँदनी छुपती है तकयों के तले आँखों में ख़्वाब

शराब पी जान तन में आई अलम से था दिल कबाब कैसा

शब को नाला जो मिरा ता-ब-फ़लक जाता है

शब कि मुतरिब था शराब-ए-नाब थी पैमाना था

क़त्अ होता रहे इस तरह बयान-ए-वाइज़

मेहर-ओ-उल्फ़त से मआल-ए-तहज़ीब

जबीन पर क्यूँ शिकन है ऐ जान मुँह है ग़ुस्से से लाल कैसा

हुए ख़ल्क़ जब से जहाँ में हम हवस-ए-नज़ारा-ए-यार है

है निगहबाँ रुख़ का ख़ाल-रू-ए-दोस्त

है नौ-जवानी में ज़ोफ़-ए-पीरी बदन में रअशा कमर में ख़म है

फ़िराक़ में दम उलझ रहा है ख़याल-ए-गेसू में जांकनी है

भला हो जिस काम में किसी का तो उस में वक़्फ़ा न कीजिएगा

बना के आईना-ए-तसव्वुर जहाँ दिल-ए-दाग़-दार देखा

अक़्ल पर पत्थर पड़े उल्फ़त में दीवाना हुआ

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