Islamic Poetry of Habeeb Musvi

Islamic Poetry of Habeeb Musvi
नामहबीब मूसवी
अंग्रेज़ी नामHabeeb Musvi

ख़ुदा करे कहीं मय-ख़ाने की तरफ़ न मुड़े

कसी हैं भब्तियाँ मस्जिद में रीश-ए-वाइज़ पर

दिल लिया है तो ख़ुदा के लिए कह दो साहब

बहुत दिनों में वो आए हैं वस्ल की शब है

शब को नाला जो मिरा ता-ब-फ़लक जाता है

सब में हूँ फिर किसी से सरोकार भी नहीं

जबीन पर क्यूँ शिकन है ऐ जान मुँह है ग़ुस्से से लाल कैसा

हुए ख़ल्क़ जब से जहाँ में हम हवस-ए-नज़ारा-ए-यार है

है निगहबाँ रुख़ का ख़ाल-रू-ए-दोस्त

है नौ-जवानी में ज़ोफ़-ए-पीरी बदन में रअशा कमर में ख़म है

है आठ पहर तू जल्वा-नुमा तिमसाल-ए-नज़र है परतव-ए-रुख़

फ़िराक़ में दम उलझ रहा है ख़याल-ए-गेसू में जांकनी है

भला हो जिस काम में किसी का तो उस में वक़्फ़ा न कीजिएगा

बढ़ा दी इक नज़र में तू ने क्या तौक़ीर पत्थर की

अक़्ल पर पत्थर पड़े उल्फ़त में दीवाना हुआ

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